Class 11th Economics Varshik paper 2024 pdf : कक्षा 11वीं अर्थशास्त्र वार्षिक पेपर 2024

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प्रिय विद्यार्थियों जैसा कि आप सभी Class 11th Economics Varshik paper 2024 pdf तो मैं आप सभी के लिए बताऊंगा कैसे Class 11th Economics Varshik paper 2024 pdf डाउनलोड कर सकते हैं

Class 11th Economics Varshik paper 2024 pdf
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विद्यार्थियों अब आप सभी को विश्वास भी हो गया होगा कि मैं आप सभी को पेपर प्रोवाइड करने वाला हूंजैसा कि आप सभी पहले से ही जानते होंगे कि हमारे द्वारा दिए गए प्रश्न पत्र आपको परीक्षा में देखने के लिए मिलते हैं हमारा प्रयास हमेशा से यह रहता है कि हर विद्यार्थी परीक्षा में टॉप करें मतलब अच्छे अंक प्राप्त करें और आगे बड़े विद्यार्थियों अगर आप STUDY NOTES PJ से पहले जुड़े हुए हैं तो आप सभी को पता होगा कि इसके पहले भी मैंने आप सभी की कितनी मदद की है वार्षिक परीक्षा 2024 में भी संपूर्ण मदद करने का प्रयास करूंगा बस आप सभी को इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा विद्यार्थियों तक शेयर करना है

BOARD TYPEMP BOARD
EXAM TYPEवार्षिक परीक्षा 2024
SUBJECTEconomics
EXAM DATE14 march
CLASS11th
PAPER TYPEmodel PAPER
Class 11th Economics Varshik paper 2024 pdf


           कक्षा 11वी

                  विषय (Economics उत्तर )


           कक्षा 11 वीं अर्थशास्त्र

प्रश्न 1. सही विकल्प उत्तर

(i) (अ) उपभोग

(ii) (द) उपर्युक्त सभी।

(iii) (ब) बहुलक

(iv) (ख) मिश्रित

(v) (द) राष्ट्रीय आय व प्रति व्यक्ति आय।

(vi) (अ) 100%

प्रश्न 2 रिक्त स्थान उत्तर

(i) अनुमानों, (ii) देव निर्देशन पद

(iii) बहुलक, (iv) कार्ल-पियर्सन

(v) जुलाई 1991 (vi) महबूब – अल-हक


प्रश्न 3. सही जोड़ी उत्तर
(i) संगणना रीति-(ङ) खर्चीली

(ii) भूयिष्ठिक-(च) विश्लेषण तालिका

(iii) निम्न स्तरीय सह-सम्बन्ध-(क) + +0 0 से 0-25 से कम कम

(iv) आधार वर्ष का मूल्य-(ख) P०

(v) अपना उद्यम-(ग) स्वरोजगार

(vi) वन कटाई रोन्को आन्दोलन-(घ) चिपको आन्दोलन

प्रश्न 4 सत्य असत्य उत्तर

(i) सत्य

(ii) असत्य

(iii) सत्य

(iv) असत्य

(v) सत्य

(vi) सत्य

(vii) असत्य


प्रश्न 5. एक शब्द उत्तर

उत्तर- (i) नहीं, (ii) Pol √ Σροφο × 100, (iii) प्राथमिक क्षेत्र, (iv) 2 फरवरी, 2006, (v) स्थानान्तरी कृषि से, (vi) विकसित राष्ट्रों से, (vii) चीन।


प्रश्न क्रमांक 6 का उत्तर
उत्तर- “अर्थशास्त्र मनुष्य के जीवन की साधारण व्यापार सम्बन्धी क्रियाओं का अध्ययन है। यह इस बात की विवेचना करता है कि वह किस प्रकार धनोपार्जन करता है और किस प्रकार उसका उपयोग करता है। इस प्रकार, यह एक और धन का अध्ययन है और दूसरी ओर, जो अधिक महत्वपूर्ण है, मनुष्य के अध्ययन का एक भाग है।


प्रश्न क्रमांक 7 का उत्तर
उत्तर-प्राथमिक समंकों से आशय ऐसे समंकों से है, जो अनुसन्धानकर्ता द्वारा स्वयं एकत्रित किये जाते हैं। प्राथमिक समंक मौलिक होते हैं, क्योंकि वे समंक नये सिरे से एकत्रित किये जाते हैं। उदाहरण के लिए, किसी फैक्ट्री के श्रमिकों के दैनिक खर्च से सम्बन्धित समंक एकत्रित करने हैं, जो अनुसन्धानकर्ता द्वारा एक-एक श्रमिक के पास प्रत्यक्ष रूप से जाकर समंक प्राप्त किये जाते हैं।

प्रश्न क्रमांक 8 का उत्तर
उत्तर-संकलित समंकों को किसी गुण के आधार पर समान व असमान अलग-अलग वर्गों में बाँटने की प्रक्रिया को वर्गीकरण कहा जाता है |


प्रश्न क्रमांक 9 का उत्तर
उत्तर-दोष-(1) इसका मान केवल निरीक्षण द्वारा नहीं किया जा सकता है।

(2) इसके प्रत्येक मूल्य को समान महत्व दिया जाता है जिससे परिणाम भ्रमात्मक हो सकते हैं।

(3) कभी-कभी माध्य मूल्य वह मूल्य होता है जो मूल्यों में कोई अस्तित्व नहीं रखता।

प्रश्न क्रमांक 10 का उत्तर
उत्तर-अपकिरण मापने की प्रमुख विधियाँ हैं- (1) विस्तार, (2) चतुर्थक विचलन,

3) माध्य विचलन तथा (4) प्रमाप विचलन|

प्रश्न क्रमांक 11 का उत्तर
उत्तर-जिस व्यवसाय में समस्त वस्तुओं, सेवाओं का क्रय-विक्रय-भुगतान और प्राप्तियों का आधार मुद्रा हो और सारा उत्पादन बाजार बेचने के उद्देश्य से किया जाए, उसे बाजार अर्थव्यवस्था कहते हैं।

प्रश्न क्रमांक 12 का उत्तर
उत्तर-जब कोई व्यक्ति कार्य करने की योग्यता एवं इच्छा रखता है, परन्तु उसे कार्य नहीं मिल पाता है, तो इसे बेरोजगारी कहते हैं। अतः बेरोजगारी से आशय ऐसी स्थिति से है, जिसमें एक राष्ट्र उन सभी लोगों को कार्य उपलब्ध नहीं करा पाता है जो कार्य करने के इच्छुक एवं योग्य होते हैं।


प्रश्न क्रमांक 13 का उत्तर
उत्तर- यह बेरोजगारी भारत जैसे कृषि प्रधान देश में विशेष रूप से मिलती है। वर्ष के कुछ भाग में तो किसानों पर अत्यधिक कार्य भार होता है और कुछ भाग में कार्य भार कम होता है। इस कम कार्य भार वाले समय में ही मौसमी बेरोजगारी होती है। सामान्यतः फसल की कटाई के बाद और अगली बुवाई से पहले मौसमी बेरोजगारी को स्थिति पायी जाती है।

प्रश्न क्रमांक 14 का उत्तर
उत्तर-परिवहन, संचार, बैंक, व्यापार आदि से सम्बन्धित गतिविधियाँ तृतीयक क्षेत्र
में आती है।

प्रश्न क्रमांक 15 का उत्तर
उत्तर- अपकिरण का शाब्दिक अर्थ ‘बिखराव’ या ‘फैलाव’ है, अर्थात् इसके द्वारा यह
पता लगाने का प्रयास करते हैं कि समंकों या आवृत्ति वितरण में एकरूपता है या विविधता। बाउले के अनुसार, “अपकिरण पदों के विचरण या अन्तर का एक नाप है।”
स्यीगेल के अनुसार, “संख्यात्मक आँकड़े एक माध्य मूल्य के दोनों ओर फैलने की जिस सीमा तक प्रवृत्ति रखते हैं, उस सीमा को उन आँकड़ों का विचरण या अपकिरण कहते हैं।”

प्रश्न क्रमांक 16 का उत्तर
उत्तर- प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान के गुण
(1) समंकों में परिशुद्धता की माता पाई जाती है
(2) समंकों में मौलिकता का गुण पाया जाता है (3) समंकों का संकलन एक ही व्यक्ति द्वारा किये जाने के कारण उनमें सजातीयता व एकरूपता का गुण पाया जाता है।

(4) तुलनात्मक अध्ययन सम्भव हो जाता है।

(5) यह विधि लोचदार है, क्योंकि अनुसन्धानकर्ता उद्देश्य की पूर्ति के लिए आवश्यकतानुसार परिवर्तन कर सकता है।

प्रश्न क्रमांक 17 का उत्तर
उत्तर- वितरण में असमानता के अनुमान के लिए एक आरेखी माप जिसे लरिंज वक्र कहा जाता है। इस वक्र का प्रयोग संचयी रूप में व्यक्त सूचनाओं की परिवर्तनशीलता को
मात्रा को दर्शाने के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए, आय की लॉरेंज वक्र जनसंख्या के प्रतिशत और उसको कुल आय के भाग में सम्बन्ध बताती है। यह दो या दो से अधिक वितरणों को परिवर्तनशीलता को तुलना में विशेष उपयोगी है, जिसे दो या दो से अधिक लॉरेंज वक्र एक हो अक्ष पर बनाकर तुलना की जा सकती है।

प्रश्न क्रमांक 18 का उत्तर
ब्रिटिश शासन की दो प्रमुख शोषणकारी नीति बतलाइए।संकेत : दूसरे बिन्दु के लिए अति लघु
उत्तर – भारत में ब्रिटिश सरकार की आर्थिक नीतियों के कारण भारतीय उद्योग-व्यापार
नष्ट हो गये। औद्योगिक क्रान्ति के पश्चात् इंग्लैण्ड में सूती वस्त्र उद्योग के विकास के कारण तथा यूरोप में आयातों पर बढ़ते प्रतिबन्ध के कारण अंग्रेजी सरकार ने भारतीय उद्योगों को नष्ट करने की नीति अपनायी। भारत कुछ ही दशकों के भीतर एक प्रमुख निर्यातक की स्थिति से गिरकर विदेशी वस्तुओं का सबसे बड़ा उपभोक्ता राष्ट्र बन गया। भारतीय कुटीर तथा छोटे पैमाने के उद्योगों का तेजी से पतन हो गया, क्योंकि वे इंग्लैण्ड के कारखानों के बने माल की प्रतियोगिता विदेशी सरकार की शत्रुतापूर्ण नीति के कारण न कर सके। अब वह ब्रिटिश उद्योगों के लिए कच्चे माल का उत्पादन करने लगे। भारत का विदेशी व्यापार भारतीय व्यापारियों के हाथों से निकल गया।

प्रश्न क्रमांक 19 का उत्तर
उत्तर-
भारतीय अर्थव्यवस्था पर ब्रिटिश शासन के रचनात्मक प्रभाव

(1) नवीन सामाजिक व्यवस्था- पुरानी सामाजिक व्यवस्था को समाप्त कर अंग्रेजों ने नवीन सामाजिक व्यवस्था की नींव रखी थी। ब्रिटिश सभ्यता के आगमन से लोगों के रहन-सहन और सोचने विचारने के तरीकों में परिवर्तन आया। सामाजिक पथ में यह एक अनुकूल प्रभाव था।

(2) यातायात तथा संचार साधनों का विकास-उन्नीसवीं सदी के मध्य तक भारत में परिवहन के साधन पिछड़े हुए थे। ब्रिटिश शासन ने इनमें सुधार किये। “उन्होंने नदियों में स्टीमर चलाए तथा सड़कों को सुधारना आरम्भ किया। ग्रैंड ट्रंक रोड पर कोलकाता से दिल्ली तक का काम 1839 में प्रारम्भ किया गया और उसे उन्नीसवीं सदी के छठे दशक में पूरा कर लिया गया। किन्तु परिवहन में असली सुधार सिर्फ रेलमार्गों के निर्माण से हुआ। रेलवे के विकास से भारत में विकास की संभावनाएँ बड़ी सुदृढ़ हुई।”

(3) औद्योगिक विकास- जहाँ एक ओर भारत के हस्त उद्योगों का पतन हो रहा था, वहीं दूसरी ओर नवीन प्रकार के उद्योगों का भारत में जन्म भी हो रहा था। भारत में आधुनिक उद्योगों का विकास 1850 के पश्चात् हुआ। नवीन औद्योगिक क्रिया ने दो रुप लिये-बागान उद्योग एवं कारखाना उद्योग। कारखाना उद्योग की वास्तविक व सन्तोषजनक प्रगति 1875 के पश्चात् हुई। आगे चलकर सूती और जूट उद्योग का पर्याप्त विकास हुआ। इसके अतिरिक्त, ऊन, चमड़ा, चीनी और कागज जैसे उद्योग भी उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त तक स्थापित हो गये थे।

(4) शिक्षा का विकास – ब्रिटिश शिक्षा भारत के लिए हानिप्रद रही, तो कुछ क्षेत्रों में लाभप्रद भी रही। जैसा कि श्री ताराचन्द लिखते हैं- “यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि अंग्रेजी शिक्षा ने एक आधुनिक समाज के विकास में निश्चित योगदान दिया और भारत के लोगों के एकीकरण में हाथ बताया।”

प्रश्न क्रमांक 20 का उत्तर
वैश्वीकरण के प्रमुख तत्वों का उल्लेख कीजिए। (कोई पाँच)

उत्तर-वर्ष 1991-92 में प्रारम्भ किये गये आर्थिक सुधारों तथा उदारीकरण की नीतियों का एक उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था का वैश्वीकरण करना भी था। इसके लिए निम्नलिखित उपाय अपनाये गये हैं—

(1) प्रारम्भिक दौर में आयातों को अत्यधिक उदार बनाया गया और अब तो आयातों पर से सभी प्रकार के मात्रात्मक प्रतिबन्ध उठा लिये गये हैं। (2) रुपये को चालू खाते पर पूर्ण परिवर्तनीय बना दिया गया है। अब धीरे-धीरे रुपया

पूँजी खाते पर पूर्ण परिवर्तनीयता की ओर बढ़ रहा है।

(3) विदेशी इक्विटी के अन्तप्रवाह को अत्यधिक सुगम तथा उदार बना दिया गया है। अब विदेशी निवेशकों को वे समस्त सुविधाएँ मिल रही हैं, जो घरेलू निवेशकों को प्राप्त हैं। (4) दुहरे कराधान को यथासम्भव समाप्त किया गया है।

(5) देशी एवं विदेशी कम्पनियों पर निगम कर अब लगभग बराबरी के स्तर पर है। (6) विदेशी प्रौद्योगिकी करार किये जाने, विदेशी कम्पनियों के ब्राण्ड नामों तथा ट्रेडमार्को की बिना प्रौद्योगिकी हस्तान्तरण के ही प्रयुक्त किये जाने की छूट प्रदान कर दी गई है


प्रश्न क्रमांक 21 का उत्तर
उत्तर-सह-सम्बन्ध दो चरों में ऐसे सम्बन्ध को स्पष्ट करता है जिसके अन्तर्गत किसी एक चर के मानों में परिवर्तन होने से दूसरे चर के मानों में भी परिवर्तन होता है। चरों में साथ-साथ
परिवर्तन होने को इस प्रवृत्ति को सह-सम्बन्ध कहते हैं। उदाहरणार्थ, आय व उपभोग की मात्रा, कीमत व माँग की मात्रा, उत्पादकता और मजदूरी दर आदि। परिभाषा-प्रो. किंग के अनुसार, “दो चरों या पदमालाओं के बीच कार्य-कारण सम्बन्ध को ही सह-सम्बन्ध कहते हैं।” सह-सम्बन्ध के प्रकार-सह-सम्बन्ध मुख्यतः निम्नलिखित प्रकार के होते हैं

(1) दिशा के आधार पर
(a) धनात्मक सह-सम्बन्ध :- यदि एक चर के मानों में वृद्धि (या कमी) होने पर दूसरे चर के मानों में वृद्धि (या कमी) हो, अर्थात् दोनों चरों में परिवर्तन एक ही दिशा में हो, तो इस प्रकार के सह-सम्बन्ध धनात्मक कहलाते हैं। वस्तुओं को माँग बढ़ने पर उनके मूल्यों में वृद्धि होना, वेतन वृद्धि के साथ मूल्य सूचकांक में वृद्धि होना, ऊँचाई में वृद्धि होने पर भार में वृद्धि होना, इत्यादि धनात्मक सह-सम्बन्ध के उदाहरण हैं।

(b) ऋणात्मक सह-सम्बन्ध:-यदि एक चर के मानों में वृद्धि (या कमी) होने पर दूसरे चर के मानों में कमी (या वृद्धि) हो, अर्थात् दोनों चरों में परिवर्तन विपरीत दिशा में हो, तो इस प्रकार के सह-सम्बन्ध ऋणात्मक कहलाते हैं। उत्पादन बढ़ने पर मूल्य में कमी होना, मूल्य में वृद्धि होने पर माँग में कमी होना, इत्यादि ऋणात्मक सह सम्बन्ध के उदाहरण है।

(2) चरों की संख्या के आधार पर

(a) सरल सह-सम्बन्ध:-जब आँकड़ों में केवल दो चर ही हों, तो उनके बीच सह सम्बन्ध सरल सह-सम्बन्ध कहलाता है।

(b) बहुगुणी सह-सम्बन्ध:- जब चरों की संख्या दो से अधिक हो तथा एक चर के मानों पर अन्य दो या अधिक चरों के मानों का संयुक्त प्रभाव पड़े, तो उन चरों के बीच सह-सम्बन्ध को बहुगुणी सह-सम्बन्ध कहते हैं। उदाहरणार्थ, सिचाई और खाद को मात्रा का प्रभाव गेहूँ की उपज पर पड़ता है।

(c) आंशिक सह-सम्बन्ध: – यह दो चरों और के बीच सम्बन्ध होता है जबकि इन चरों पर अन्य चरों के प्रभाव को विलोपित कर दिया जाए।

(3) अनुपात के आधार पर

(a) रेखीय सह-सम्बन्ध:- जब दो चरों में परिवर्तनों का अनुपात सदैव अचर रहता है, तो उन चरों के मध्य सह-सम्बन्ध को रेखीय सह-सम्बन्ध कहते हैं। उदाहरणार्थ, किसी विद्यालय में छात्रों की संख्या तथा उनके द्वारा जमा किये गये शुल्क में रेखीय सह-सम्बन्ध होता है।

(b) अरेखीय सह-सम्बन्ध:- जब दो चरों में परिवर्तनों का अनुपात अचर न हो, अर्थात् बदलता रहता हो, तो उनके मध्य सह-सम्बन्ध को अरेखीय सह-सम्बन्ध कहते हैं। जैसे, यदि अमिकों की संख्या में वृद्धि करने पर उत्पादन में वृद्धि उसी अनुपात में न हो, तो उनके बीच अरेखीय सह-सम्बन्ध होगा।

प्रश्न क्रमांक 22 का उत्तर
उत्तर- निजीकरण से अभिप्राय उस प्रक्रिया से है, जिनमें ऐसे उद्योगों तथा व्यवसायों जो अब तक सरकारी स्वामित्व में थे, के स्वामित्व को निजी क्षेत्र को हस्तान्तरित कर दिया जाता है। निजीकरण के अन्तर्गत निजी क्षेत्र को व्यावसायिक गतिविधियों में वृद्धि कर दी जाती है तथा उद्योग या विशेष क्षेत्र से सरकारी नियन्त्रण को आंशिक या पूर्ण रूप से हटा लिया जाता है। इसके विभिन्न रूप हो सकते हैं-

(1) विराष्ट्रीयकरण अर्थात् राष्ट्रीयकृत प्रतिष्ठानों से राज्य के नियन्त्रण को हटा लेना। (2) सार्वजनिक क्षेत्र के विकास पर रोक लगाना।

3) सार्वजनिक प्रतिष्ठानों को निजी उद्यमियों या निजी क्षेत्र को हस्तान्तरित कर देना।

(

(4) सार्वजनिक क्षेत्र यां राष्ट्रीयकृत प्रतिष्ठानों की पूँजी को जनता को या निजी क्षेत्र को बेचना।

(5) सार्वजनिक क्षेत्र हेतु सुरक्षित उद्योगों में निजी क्षेत्र को उद्योग स्थापित करने की अनुमति प्रदान करना।

(6) सार्वजनिक कम्पनियों द्वारा अपने कार्यों के निजी क्षेत्र को लाइसेन्स देना अथवा उत्पादन या विक्रय अधिकार हस्तान्तरित करना।

निजीकरण के उद्देश्य

निजीकरण का मूल उद्देश्य निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित

करना, उसका कार्य क्षेत्र बढ़ाना तथा भागीदारी प्रदान करना होता है। इसके कुछ उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

(1) सार्वजनिक क्षेत्र की निराशाजनक भूमिका के मद्देनजर देश में उत्पादन तथा विनियोग को दर को बढ़ाया जाना।

(3) वृद्धि करना।

(2) राजकोष पर बढ़ते हुए सार्वजनिक क्षेत्र के घाटे का बोझ कम करना। उत्पादन में वृद्धि करना, उत्पादन क्षमता बढ़ाना, उत्पादन तकनीक तथा किस्म में

से (4) प्रतियोगिता में वृद्धि करना जिससे जनता को कम लागत पर तथा अच्छी तकनीक

उत्पादित माल उपलब्ध कराया जा सके।

(5) प्रबन्धकीय योग्यता तथा दक्षता में वृद्धि करना।

(6) नये उद्योगों की स्थापना तथा आयात प्रतिस्थापन पर जोर देना।

प्रश्न क्रमांक 23 का उत्तर
उत्तर- भारत में बेरोजगारी की समस्या के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

(1) जनसंख्या में भारी वृद्धि- भारत में बेरोजगारी का मुख्य कारण तेज गति से बढ़ती हुई जनसंख्या है। प्रतिवर्ष 1-20 प्रतिशत की दर से जनसंख्या में वृद्धि हो रही है। जनगणना वर्ष 2011 के अनुसार, भारत की जनसंख्या एक अरब 21 करोड़ से भी अधिक हो गयी है। भारत की जनसंख्या में प्रतिवर्ष 1-50 करोड़ की वृद्धि हो रही है, जो बेरोजगारी का सबसे बड़ा कारण है।

(2) प्राचीन उद्योगों का अन्त- आंग्ल सरकार की दोषपूर्ण नीति के कारण देश में लघु

तथा कुटीर उद्योगों का करुण अन्त हो गया। परिणामस्वरूप, अनेक व्यक्ति बेरोजगार हो गये।

(3) आर्थिक विकास की मन्द गति- यद्यपि भारत में प्राकृतिक संसाधनों की विपुलता है, किन्तु इनका समुचित उपयोग न हो पाने के कारण रोजगार के अवसरों का आवश्यकतानुसारः विस्तार नहीं हो पाया है। इसलिए देश में बेरोजगारी की समस्या चनो हुई है।

(4) देश में पूँजी का अभाव भारत में पूँजी की भी बहुत कमी है। इसलिए उत्पादन तथा रोजगार के अवसरों में वृद्धि नहीं हो पायी है और बेरोजगारी की समस्या बढ़ती जा रही

है। (5) त्रुटिपूर्ण आर्थिक नियोजन- भारत में सन् 1951 से आर्थिक विकास हेतु नियोजन की नीति अपनायी गयी है, परन्तु भारतीय नियोजन में रोजगारमूलक नीति का प्रतिपादन नहीं किया गया है। न ही इस बात के लिए नीति निर्धारित की गयो कि योजनाओं के अन्तर्गत कितने लोगों को रोजगार दिलाना है|

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Economics

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