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BOARD TYPE | MP BOARD |
EXAM TYPE | वार्षिक परीक्षा 2024 |
SUBJECT | political Science |
EXAM DATE | 6 march |
CLASS | 11th |
PAPER TYPE | model PAPER |
कक्षा 11 वीं राजनीति विज्ञान
प्रश्न 1. सही विकल्प उत्तर
(i) (द) लिखित एवं निर्मित
(ii) (ब) राष्ट्रपति
(iii) (अ) 201
(iv) (ब) स्व का शासन
(V) (ब) धर्म
(vi) (ब) बहु-नागरिकता
प्रश्न 2 रिक्त स्थान उत्तर
(i) 26 जनवरी 1950,
(ii) 1950
(iii) कठोर
(iv) बॉक्सिंग,
(V) सामाजिक,
(vi) प्राकृतिक नागरिकता,
(VII) 9 दिसम्बर 1946
प्रश्न 3 सही जोड़ी उत्तर
(i) अमेरिका
(ii) संसदीय व्यवस्था
(iii) जम्मू कश्मीर
(iv) स्व का शासन
(v) डॉ भीम राव अंबेडकर
(vi) व्यक्ति का अन्तःकरण
प्रश्न 4. एक शब्द उत्तर
(i) किसी देश को व्यवस्थित चलाने के लिए नियमों और कानूनों का एक दस्तावेज है।,
(ii) लोकसभा और राज्यसभा,
(iii) राष्ट्रपति
(iv) अमेरिका,
(v) मूल अधिकार,
(vi) राष्ट्र के प्रति निष्ठा और उसकी प्रगति,
प्रश्न 5. सत्य असत्य उत्तर
(i) असत्य
(ii) सत्य
(iii) असत्य
(iv) सत्य
(v) सत्य
(vi) सत्य
(vii) सत्य
प्रश्न क्रमांक 6. का उत्तर
उत्तर- किसी भी स्वतन्त्र राष्ट्र के निर्माण में मौलिक अधिकार तथा नीति निदेशक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं राज्य के नीति निदेशक तत्व जनतांत्रिक संवैधानिक विकास के नवीनतम तत्व है। सबसे पहले वे आयरलैण्ड (Ireland) के संविधान में लागू किए गए थे। ये वे तत्व है जो संविधान के विकास के साथ ही विकसित हुए थे। इन तत्वों का कार्य एक जनकल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है।
प्रश्न क्रमांक 7. का उत्तर
उत्तर- 18 वर्ष और इससे ऊपर के समस्त नागरिकों को चुनावों में मत देने का अधिकार जिसमें धर्म, नस्ल, लिंग जाति व जन्म स्थान के आधार पर कोई भेदभाव न हो, सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार कहलाता है।
प्रश्न क्रमांक 8. का उत्तर
उत्तर- यदि कोई सदस्य अपने दल के नेतृत्व के आदेश के बावजूद सदन में उपस्थित न हो या दल के निर्देश के विपरीत सदन में मतदान करे अथवा स्वेच्छा से दल की सदस्यता से त्यागपत्र दे दे तो उसे दलबदल कहते हैं।
प्रश्न क्रमांक 9. का उत्तर
उत्तर- संघवाद एक संस्थागत प्रणाली है जो दो प्रकार की राजनीतिक व्यवस्थाओं को समाहित करती है। इसमें एक प्रान्तीय स्तर की होती है और दूसरी केन्द्रीय स्तर की। प्रत्येक सरकार अपने क्षेत्र में स्वायत्त होती है। इसमें संविधान द्वारा शक्तियों को केन्द्र और प्रान्तों की सरकारों में विभाजित कर दिया जाता है तथा प्रायः दोहरी नागरिकता पाई जाती है, संविधान सर्वोच्च होता है, न्यायपालिका स्वतन्त्र तथा सर्वोच्च होती है।
प्रश्न क्रमांक 10. का उत्तर
उत्तर- मानव जीवन में स्वतन्त्रता का बहुत अधिक महत्व है। मानव अपनी चहुंमुखी उन्नति स्वतन्त्रता के माध्यम से ही कर सकता है। स्वतन्त्रता के अभाव में मानव व्यक्तित्व का विकास सम्भव नहीं है। स्वतन्त्रता से ही मानव में नैतिक गुणों का विकास होता है। स्वतन्त्रता समाज और राष्ट्र की प्रगति में सहायक सिद्ध होती है। अतः मानव जीवन में स्वतन्त्रता का अत्यधिक महत्व है।
प्रश्न क्रमांक 11. का उत्तर
उत्तर- राजनीति एक क्रिया है। इसका जन्म इस तथ्य से होता है कि हमारे और हमारे समाज के लिए क्या उचित एवं वांछनीय है और क्या नहीं। इस बारे में हमारी दृष्टि अलग-अलग होती है। इसमें समाज में चलने वाली बहुविध वार्ताएँ शामिल हैं, जिनके माध्यम से सामूहिक निर्णय किए जाते हैं। राजनीतिक केन्द्रीय बिन्दु जनता व सरकार के बीच के संबंधों से है।
प्रश्न क्रमांक 12. का उत्तर
उत्तर- समानता का सकारात्मक पहलू-समानता के लिए आवश्यक है कि समाज में विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग या व्यक्ति के विशेषाधिकार को समाप्त किया जाये, क्योंकि वर्गहित तथा पक्षपात की धारणाएँ असमानता को जन्म देती हैं। समाज में रहने वाले सभी व्यक्तियों को समान अधिकार दिये जायें। सभी को उन्नति करने के लिए समान उपलब्ध कराये जायें। इन अवसरों के आधारों पर प्रत्येक व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास कर सके। अतः समानता का आशय उन परिस्थितियों के अस्तित्व से है, जिनमें सभी लोगों को अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए समान अवसर प्राप्त हो सकें और उस असमानता का अन्त हो जाय, जिसका मूल सामाजिक विषमता है।
प्रश्न क्रमांक 13. का उत्तर
उत्तर- सामाजिक आधार पर नागरिकों में किसी प्रकार का भेदभाव न करते हुए समस्त नागरिकों को उन्नति करने के समान अवसर प्राप्त होना ही सामाजिक न्याय है। न्यायाधीश पी. वी. गजेन्द्र गड़कर के अनुसार, “सामाजिक न्याय का अर्थ सामाजिक असमानताओं को समाप्त करके सामाजिक क्षेत्र में प्रत्येक व्यक्ति को समान अवसर प्रदान करने से है।” बार्कर के अनुसार, “प्रत्येक व्यक्ति को उसके व्यक्तित्व के विकास के लिए पूर्ण सुविधाएँ उपलब्ध कराना और सामजिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना ही सामाजिक न्याय है।” समाजवादियों के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को उसकी आवश्यकतानुसार सामाजिक सुविधाएँ उपलब्ध कराई जायें। इस प्रकार किसी के साझता, धर्म, रंग, वंश और लिंग के आधार पर भेदभाव न करना ही सामाजिक न्याय है।
प्रश्न क्रमांक 14. का उत्तर
उत्तर- नागरिक उस व्यक्ति को कहते हैं, जो राज्य का सदस्य होने के नाते राजनीतिक तथा सामाजिक अधिकारों का उपभोग करता है।
प्रश्न क्रमांक 15. का उत्तर
उत्तर- राष्ट्र से तात्पर्य एक ऐसे मानव समूह से है जो वंश, क्षेत्र, भाषा या धर्म की विभिन्नताओं के बावजूद समान ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के कारण आपसी एकता के बंधन में बंधे होते हैं और किसी विशिष्ट देश को अपनी ‘मातृभूमि’ या ‘पितृभूमि’ या ‘पवित्रभूमि’ मानते हैं।
प्रश्न क्रमांक 16. का उत्तर
उत्तर- निर्वाचन घोषणा पत्र में सामान्यतया, साधारण रूप से सम्बन्धित राजनैतिक दल की घोषित विचारधारा अंतर्विष्ट होती है और देश/राज्य एवं लोगों के लिए उनकी नीतियाँ एवं कार्यक्रम अन्तर्विष्ट होते है इसलिए यह किसी राजनैतिक दल का जनसाधारण के लिए एक सन्दर्भ दस्तावेज या बेंचमार्क के रूप में कार्य करता है।
प्रश्न क्रमांक 18. का उत्तर
ग्राम पंचायत के तीन कार्य लिखिए।
उत्तर- (1) सार्वजनिक मार्गों का निर्माण, मरम्मत तथा देखभाल करना। (2) कुएँ, तालाब, नाला बँधान आदि का निर्माण करना। (3) अस्पताल खोलना तथा संक्रामक रोगों को रोकना। (4) गाँव की सार्वजनिक सम्पत्ति की देखभाल करना। (5) मरे पशुओं को फेंकवाने की व्यवस्था करना। (6) जन्म-मरण का लेखा-जोखा रखना. (7) बाजार का प्रबन्ध करना। (8) तालाबों, कुओं तथा चारागाहों का प्रबन्ध करना। (9) आग बुझाने की व्यवस्था करना। (10) गाँव में प्राथमिक शिक्षा का विकास करना। (11) मेले तथा प्रदर्शनियों का आयोजन करना। (12) गाँव की सफाई तथा प्रकाश का प्रबन्ध करना। (13) कृषि, वाणिज्य तथा उद्योगों के विकास में सहायता देना। (14) सड़ी-गली वस्तुओं की बिक्री पर रोक लगाना।
प्रश्न क्रमांक 19. का उत्तर
आर्थिक एवं सामाजिक अधिकार में अंतर
आर्थिक न्याय:-
1.आर्थिक न्याय का अर्थ है कि आर्थिक विकास के लिए सभी व्यक्तियों को समान अवसर प्राप्त हो।
2.समाज में आर्थिक असमानता न हो।
3.प्रत्येक व्यक्ति अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा कर सकें।
4.सभी को अपने-अपने परिश्रम का पारिश्रमिक मिले|
सामाजिक न्याय:-
1.सामाजिक न्याय की स्थापाना हेतु यह आवश्यक है |
2.समाज में वस्तुओं, संसाधनों व सेवाओं का समान वितरण हो
3.जिससे सभी नागरिक जीवन की सभी स्थिति व अवसरों पर बुनियादी समानता का उपभोग कर सकें।
प्रश्न क्रमांक 20. का उत्तर
उत्तर-भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) भारत एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, धर्म निरपेक्ष, समाजवादी, लोकतन्त्रात्मक गणराज्य-भारत एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न राष्ट्र होगा। यह अपनी आन्तरिक और बाह्या नीतियों के निर्धारण में पूर्ण स्वतन्त्र होगा। भारत विदेशी कानून और नियन्त्रण से मुक्त होगा।
(2) निर्मित एवं लिखित संविधान:-भारत का संविधान भारतीय संविधान निर्मात्री सभा ने बनाया है। इसे लिखने में 2 साल, 11 महीना, 18 दिन लगे। संविधान में केन्द्र और राज्यों के विषय, नागरिकों के अधिकार, सरकार के तीनों अंगों के गठन के कार्य आदि बातें लिखी गयी हैं, अतः भारत का संविधान निर्मित और लिखित संविधान है।
(3) भारत का संविधान संघात्मक होते हुए भी एकात्मक:- भारत का संविधान संघात्मक और एकात्मक दोनों प्रकार का है। लिखित संविधान, केन्द्र और राज्यों के मध्य शक्ति विभाजन, संविधान की सर्वोच्चता, भारत में इकहरी नागरिकता, एक-सी न्याय व्यवस्था, एक-सी अखिल भारतीय सेवाये एकात्मक संविधान की विशेषताएँ है।
(4) लोक-कल्याणकारी राज्य की स्थापना भारत राज्य को लोक:-कल्याणकारी राज्य बनाने के लिए नीति निदेशक तत्वों का उल्लेख संविधान में किया गया।
(5) संसदीय प्रणाली की व्याख्या:-भारतीय संविधान में संसदीय प्रणाली को अपनाया गया है, इसमें संसदीय प्रणाली की सभी विशेषताएँ मौजूद हैं, जैसे वास्तविक और नाममात्र की कार्यपालिका, मंत्रियों का सामूहिक उत्तरदायित्व आदि।
(6) स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका की स्थापना:-भारतीय संविधान के द्वारा नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु, उ केन्द्र और राज्यों के विवादों को सुलझाने के लिए एवं संविधान की व्याख्या करने के लिए एक निष्पक्ष और स्वतन्त्र न्यायपालिका ( की स्थापना की गई है।
प्रश्न क्रमांक 21. का उत्तर
उत्तर- संविधान के संरक्षक के रूप में-सर्वोच्च न्यायालय संविधान के संरक्षक होने के नाते संविधान की रक्षा के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाता है- (i) संघ या राज्य व्यवस्थापिका द्वारा बनाये गये कानूनों को वैध घोषित करता है जो संविधान के विरुद्ध होते हैं। (ii) संविधान की व्याख्या सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की जाती है। (iii) संघ और राज्यों के मध्य उठे विवादों का निर्णय सवर्वोच्च न्यायालय करता है।
प्रश्न क्रमांक 22. का उत्तर
उत्तर- राजनीतिक सिद्धांत हमारे लिए निम्न कारणों से उपयोगी है- (1) राजनीतिक सिद्धान्त उन विचारों और नीतियों के व्यवस्थित रूप को प्रतिबंधित करता है जिनसे हमारे सामाजिक जीवन, सरकार और संविधान ने आकार ग्रहण किया है। (2) यह स्वतंत्रता, समानता, न्याय, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता जैसी अवधारणाओं का अर्थ स्पष्ट करता है। (3) यह कानून का राज, अधिकारों का बँटवारा और न्यायिक पुनरावलोकन जैसी नीतियों की ‘सार्थकता’ की जाँच करता है। (4) विभिन्न तर्कों की जाँच- पड़ताल के साथ-साथ राजनीतिक सिद्धांतकार हमारे वर्तमान राजनीतिक अनुभवों का अध्ययन कर भावी सुझावों तथा संभावनाओं को चिन्हित करते हैं।
संक्षेप में, राजनीतिक सिद्धांत के अंतर्गत संविधानवाद, सरकारों के प्रकार, विधि का शासन और न्यायिक स्वतंत्रता, स्वतंत्रता, समानता और न्याय की अवधारणाएँ, नए अधिकार, सामाजिक न्याय, नागरिकता, राष्ट्र, राज्य, राष्ट्रीयता, लोकतंत्र, समाजवाद, मार्क्सवाद, पूँजीवाद, राजतंत्र, निरंकुश तंत्र, पंथनिरपेक्षता शांति, विकास, आणविक शस्त्रों के परिसीमन, संयुक्त राष्ट्रसंघ की भूमिका, भ्रष्टाचार, लाल-फीताशाही आदि विषयों का अध्ययन करते हैं। राजनीतिक सिद्धांत का विषय-क्षेत्र राजनीति जीवन के तथ्यों और राजनीतिक दर्शन दोनों से संबंधित है।
प्रश्न क्रमांक 23. का उत्तर
उत्तर- 19 वीं शताब्दी में यूरोपीय महाद्वीप में राष्ट्रवाद (Nationalism) की एक लहर चली जिसने यूरोपीय देशों का कायाकल्प कर दिया। जर्मनी, इटली, रोमानिया आदि नवनिर्मित देश कई क्षेत्रीय राज्यों को मिलाकर बने जिनकी राष्ट्रीय पहचान ‘समान’ थी। यूनान, पोलैण्ड, बल्गारिया आदि स्वतन्त्र होकर राष्ट्र बन गये। राष्ट्रवादी चेतना का उदय यूरोप में पुनर्जागरण काल से ही शुरू हो चुका था, परन्तु 1789 ई. के फ्रान्सीसी क्रांति में यह सशक्त रूप लेकर प्रकट हुआ।
18 वीं सदी में कई देश जैसे जर्मनी, इटली तथा स्विटजरलैण्ड आदि उस रूप में नहीं थे जैसा कि आज हम इन्हें देखते है। अठारहवीं सदी के मध्य जर्मनी, इटली और स्विट्जरलैंड राजशाहियों, डचों और कैंटनों में बंटे हुए थे, जिनके शासकों के स्वायतत्ता क्षेत्र थे। इसी प्रकार, पूर्वी और मध्य यूरोप निरंकुरुश राजतन्त्रों के अधीन थे और इन क्षेत्रों में तरह-तरह के लोग रहते थे। वे अपने आप को एक सामूहिक पहचान या किसी ‘समान संस्कृति’ का भागीदार नहीं मानते थे। ऐसी स्थिति राजनीतिक एकता को आसानी से बढ़ावा देने वाली नहीं थी। इन तरह-तरह ह के समूहों को आपस में बाँधने वाला तत्व, केवल सम्राट के प्रति सबकी निष्ठा थी।
फ्रांसीसी क्रान्ति से पहले फ्रांस एक ऐसा राज्य था जिनके सम्पूर्ण मु भूभाग पर एक निरंकुश राजा का शासन था। फ्रांसीसी क्रांति का नारा ‘स्वतंत्रता, समानता और विश्वबंधुत्व’ ने राजनीति को अभिजात्यवर्गीय परिवेश से बाहर कर उसे अखबारों, सड़कों और सर्वसाधारण की वस्तु बना दिया। 11 वीं शताब्दी तक आते-आते परिणाम युगान्तकारी सिद्ध हुए। नेपोलियन की संहिता इसे 1804 में लागू किया गया। इसने जन्म पर आधारित विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया। इसने न केवल न्याय के समक्ष समानता स्थापित की बल्कि सम्पत्ति के अधिकार को भी सुरक्षित किया ।
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